इस पथ-प्रदर्शनी में जो ईश्वरीय ज्ञान, व सहज
राजयोग लिपि-बद्ध किया गया है, उसकी विस्तारपूर्वक शिक्षा
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व-विधालय में दी जाती है | ऊपर जो चित्र अंकित क्या गया है, वह उसके मुख्य
शिक्षा-स्थान तथा मुख्य कार्यालय का है | इस ईश्वरीय
विश्व-विधालय की स्थापना परमप्रिय परमपिता परमात्मा ज्योति-बिन्दु शिव ने 1937
में सिन्ध में की थी | परमपिता परमात्मा शिव
परमधाम अर्थात ब्रह्मलोक से अवतरित होकर एक साधारण एवं वृद्ध मनुष्य के तन में
प्रविष्ट हुए थे क्योंकि किसी मानवीय मुख का प्रयोग किए बिना निराकार परमात्मा
अन्य किसी रीति से ज्ञान देते?
ज्ञान एवं सहज राजयोग के द्वारा सतयुग की स्थापनार्थ
ज्योति-बिन्दु शिव का जिस मनुष्य के तन में ‘दिव्य प्रवेश’ अथवा दिव्य जन्म हुआ, उस मनुष्य को उन्होंने ‘प्रजापिता ब्रह्मा’- यह अलौकिक नाम दिया | उनके मुखार्विन्द द्वारा ज्ञान एवं योग की शिक्षा लेकर ब्रह्मचर्य व्रत
धारण करने वाले तथा पूर्ण पवित्रता का व्रत लेने वाले नर और नारियों को क्रमश:
मुख-वंशी ‘ब्राह्मण’ तथा ‘ब्राह्मनियाँ’ अथवा ‘ब्रह्माकुमार’
और ब्रह्माकुमारियाँ’ कहा जाता है क्योंकि
उनका आध्यात्मिक नव-जीवन ब्रह्मा के श्रीमुख द्वारा विनिसृत ज्ञान से हुआ |
परमपिता शिव तो त्रिकालदर्शी है; वे तो उनके
जन्म-जन्मान्तर की जीवन कहानी को जानते थे कि यह ही सतयुग के आरम्भ में पूज्य श्री
नारायण थे और समयान्तर में कलाएं कम होते-होते अब इस अवस्था को प्राप्त हुए थे |
अत: इनके तन में प्रविष्ट होकर उन्होंने सन 1937 में इस अविनाशी ज्ञान-यज्ञ की अथवा ईश्वरीय विश्व-विधालय की 5000 वर्ष पहले की भांति, पुन: स्थापना की | इन्ही प्रजापिता ब्रह्मा को ही महाभारत की भाषा में ‘भगवान का रथ’ भी कहा जाता सकता है, ज्ञान-गंगा लाने के निमित बनने वाले ‘भागीरथ’
भी और ‘शिव’ वाहन ‘नन्दीगण’ भी |
जिस
मनुष्य के तन में परमात्मा शिव ने प्रवेश किया, वह उस समय कलकता में एक विख्यात जौहरी थे और श्री नारायण के अनन्य भक्त थे
| उनमें उदारता, सर्व के कल्याण की
भावना, व्यवहार-कुशलता, राजकुलोचित
शालीनता और प्रभु मिलन की उत्कट चाह थी | उनके सम्बन्ध
राजाओं-महाराजाओं से भी थे, समाज के मुखियों से भी और साधारण
एवं निम्न वर्ग से भी खूब परिचित थे | अत: वे अनुभवी भी थे
और उन दिनों उनमें भक्ति की पराकाष्ठा तथा वैराग्य की अनुकूल भूमिका भी थी |
अन्यश्च प्रवृति को दिव्य बनाने के लिए माध्यम भी प्रवृति
मार्ग वाले ही व्यक्ति का होना उचित था | इन तथा अन्य अनेकानेक कारणों से
त्रिकालदर्शी परमपिता शिव ने उनके तन में प्रवेश किया |
उनके मुख द्वारा ज्ञान एवं योग की शिक्षा लेने वाले सभी ब्रह्माकुमारों एवं ब्रह्माकुमारियों में जो श्रेष्ठ थी, उनका इस अलौकिक जीवन का नाम हुआ – जगदम्बा सरस्वती | वह ‘यज्ञ-माता’ हुई | उन्होंने ज्ञान-वीणा द्वारा जन-जन को प्रभु-परिचय देकर उनमें आध्यात्मिक जागृति लाई | उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और सहज राजयोग द्वारा अनेक मनुष्यात्माओं की ज्योति जगाई | प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा सरस्वती ने पवित्र एवं दैवी जीं
Ap
ko mere post kese lagi, agar ap ka samj nahi aya ho to muje comment kar sakte o
ya apne najdeki om shanti center par ja sakte o
Sear jarur kare jisase or atmao ko labh mil sake om shanti
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